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मौत को मात नहीं दे सके अमर

कई बार सोशल मीडिया पर हुआ था उनकी मौत की अफवाहों का शोर

अंशुमान।
आखिरकार टाइगर चला गया। मौत के क्रुर पंजों के हाथों विवश टाइगर ने सिंगापुर के अस्पताल में अपनी आखिरी सांसे ली। अमूमन मौत के समय लोग भयभीत या विवश होते हैं, लेकिन टाइगर ने अपने ही अंदाज में मौत का स्वागत किया। जोड तोड और समीकरणों की राजनीति को एक नया आयाम देने वाले अमर सिंह का कोलकाता से गहरा नाता था।
कोलकाता में उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी की थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा भी यहीं हुई थी। बडाबाजार की सुकिया स्ट्रीट स्थि‍त जैन विदयालय के बाद मछुआ स्थि‍त सारस्वात क्षत्रिय विदयालय से उन्होंाने उच्च माध्यामिक की पढाई की। यहीं उनकी पहचान विजय उपाध्या य से हुई। वह उनके बचपन के सबसे प्रिय मित्र थे। एक इंटरव्यू में अमर सिंह ने ही इस बात का जिक्र भी किया था। वह इस स्कूल के पहले विदयार्थी थे, जिन्हों ने उच्च शिक्षा के लिए सेंट जेवियर्स में दाखिला लिया था। यहां तक की कानून की पढाई करके उन्होंने बार काउंसिल में र‍जिस्ट्रेशन भी कराया था। लेकिन नियति ने उनको वकील नहीं बल्कि एक माहिर राजनेता और कारोबारी बनना तय किया था। जिसकी वजह से दिल्ली की राजनीति ने उनको अपनाया।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ से ताल्लुक रखने वाले उनके पिताजी भी उस समय पूर्वी भारत के मैनचेस्‍टर अर्थात कोलकाता में रोजगार के लिए आए थे। जहां उनके बेटे ने राजनीति का ककहरा सीखा। अमर सिंह के दादा जी कोलकाता हाईकोर्ट में वकील थे, जबकि पिताजी हरिश्चंद्र सिंह की बडाबाजार के मनोहरदास कटरा में ताले की दूकान।
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से करने वाले अमर सिंह की कालेज के दिनों से ही राजनीति में रुचि थी। कलकत्ताा जिला कांग्रेस से जुडे श्री सिंह के राजनीतिक गुरु दिग्गज नेता सुब्रत मुखर्जी ने उनको राजनीति में जोड तोड का अल्फाबेट सीखाया। जिसे उन्हों ने अपने गुरु से भी एक कदम आगे जाकर भारतीय राजनीति में प्रयोग कर अपने को साबित कर दिया। सोनिया गांधी से लेकर अनिल अंबानी और सहारा श्री सुब्रत राय तक इनके प‍रिवार के लोगों की तरह ही थे। एक बार तो अमर सिंह सोनिया गांधी से मिलने हाफ पैंट में ही मार्निंग वॉक करते हुए चले गये थे। जो अखबारों की सुर्खियों में काफी दिनों तक रही थी। एक तरह से कहा जाए तो वह सुर्खियों के सरताज थे। कलकत्ता से सीखे राजनीतिक गुर का उन्होंने भारतीय राजनीति में सफल प्रयोग कर दिखा दिया कि लाबिंग क्या चीज होती है।

अपनी गलतियों को स्वीकार करने का भी उनमें साहस था। राजनीति में जया प्रदा सरीखे अदाकारा को लाने का श्रेय भी अमर जी को ही है। हाल ही में उन्होंने अमिताभ बच्चन की टवीटर पर तारीफ करते हुए जया प्रदा पर संसद में दिए अपने बयान पर अफसोस प्रकट किया था। अमिताभ के प्रिय अमर ने उस समय इस सुपर स्टार को सहारा दिया जब वह अपने सबसे खराब समय से गुजर रहे थे। हालांकि आज भी अमिताभ बच्च‍न से लेकर सुब्रत राय सहारा तक उनको अपना अजीम दोस्त मानते हैं। रिश्ता बनाना और रिश्ता निभाना तो कोई अमर सिंह से सीखे।
जब‍ रामगोपाल यादव की वजह से उत्ततर प्रदेश के बादशाह नेता मुलायम सिंह को उनके अपने बेटे अखिलेश यादव ने छोड दिया था, उस समय भी अमर सिंह अपने दोस्त के साथ ही खडे थे। हालांकि जिस समाजवादी पार्टी को उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक अलग पहचान दी थी, एक समय ऐसा आया जब उनको समाजवादी पार्टी छोडनी पडी। लेकिन इस बडे दिल वाले राजनेता ने कभी इसके लिए अफसोस नहीं जताया। राजनीति में उनकी पहचान किंगमेकर की थी।

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