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‘विश्व हिंदी परिषद’ के तत्वावधान में ‘माँ मालती देवी स्मृति न्यास’ द्वारा ‘मदर्स डे’ के अवसर पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया

जीवन के हर शब्द-शब्द अक्षर-अक्षर में माँ ।
माँ ही गीता, वेद, रामायण वाणी स्वर में माँ ।।

‘विश्व हिंदी परिषद’ के तत्वावधान में ‘माँ मालती देवी स्मृति न्यास’ द्वारा ‘मदर्स डे’ के अवसर पर कवि सम्मेलन ‘अक्षर-अक्षर में मा’ का आयोजन किया। जिसमें देश भर से प्रसिद्ध कवियों ने अपनी हिस्सा लिया जिसमें आगरा की नामचीन कवयित्री डॉ रुचि चतुर्वेदी, रायपुर से दिव्या दुबे ‘ नेह’, बदायूँ से प्रीति अग्रवाल, धन्यवाद से अनंत महेंद्र, कोलकाता से नवीन कुमार सिंह ने अपनी माँ पर रचित हृदय स्पर्शी कविताओं से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। कार्यक्रम के संयोजन युवा कवि संजीव कुमार मुकेश ने किया। व संचालन देश के प्रसिद्ध हास्य कवि डॉ प्रतीक गुप्ता ने किया। विश्व हिंदी परिषद के महासचिव डॉ बिपिन कुमार ने माँ की महत्ता को बताते हुए कहा कि माँ ममता, प्रेम, त्याग, समर्पण की प्रतिमूर्ति होती हैं। पूरी धरती पर माँ और संतान का रिश्ता पूरी दुनियाँ में अद्भुत है, अद्वितीय है। चाहे इन्सान हो या पशु-पक्षी सबमे यह अद्भुत रिश्ता होता है। पूरी दुनियां आज मदर्स डे मना रही है भारत इसे मातृ दिवस मनाता है। युवा कवि संजीव कुमार मुकेश ने कहा कि ‘माँ के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। माँ ईश्वर की प्रतिनिधि होती हैं। माँ शब्द के उच्चारण मात्र से मन पवित्र हो जाता है। माँ का उच्चारण हृदय से होता है।
कवि सम्मेलन की शुरुआत माँ वंदना से हुई।

धनबाद के युवा कवि अनंत महेंद्र ने गीत-ग़ज़ल-मुक्तक से शानदार शुरुआत किया। उन्होंने पढ़ा-
किसी की आँखों में हमने कभी उल्फत नहीं देखी।
उतर जाए मेरे दिल में कोई मूरत नहीं देखी।
अगर कह दूँ कि दुनिया में भी कोई खूबसूरत है।
तो सुन लो माँ सी मैंने आज तक सूरत नहीं देखी।

कोलकाता के कवि नवीन कुमार सिंह ने शानदार कव्यपाठ किया और कहा कि-
आँख खोला जिंदगी सौगात लेकर आ गई
कुछ पहर, कुछ मौसमों को साथ लेकर आ गई
ईश ने आशीष देकर जब यहाँ भेजा हमें
माँ मिली जो स्नेह की बरसात लेकर आ गई

नालंदा के युवा कवि संजीव कुमार मुकेश की पंक्ति पर श्रोताओं ने खूब दाद दिया। उन्होंने सुनाया की
‘”जीवन के हर शब्द-शब्द, अक्षर-अक्षर में माँ
माँ ही गीता-वेद-रामायण, वाणी-स्वर में  माँ
माँ ही ममता, त्याग, समर्पण
रिश्तों की परिपाटी।
माँ से आंगन की तुलसी है
माँ से संझाबाती।
माँ सृष्टि की डोर सरीखी आठ पहर में माँ”‘

आगरा की अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्री *डॉ रुचि चतुर्वेदी* ने अपनी शानदार रचना प्रस्तुत किया। जिनके शब्द थे-
“माँ ममता की धरा, धरा भी माँ होती है,
दर्द सभी मिटते हैं मातु जहाँ होती है ।”

मेरठ के प्रसिद्ध ओरिजिनल हास्य कवि डॉ प्रतीक गुप्ता की पंक्तियाँ खूब सराही गयीं। उन्होंने पढ़ा-
माँ तेरे प्यार से मन ये भरता नही
जैसा करती है तू कोई करता नही
सोचा है ये कई बार, दूँ मैं कर्जा सब उतार
जाने कर्जा है कैसा जो उतरता नही।

रायपुर (छत्तीसगढ़) की कवयित्री दिव्या दुबे ‘नेह’ ने अपनी अपनी पंक्ति-
हो चाहे हर तरफ से ज़ोर ज़हरीली हवाओं का,
करूं क्या भीख में मांगी हुई कमज़र्फ छावों का।
तक़ब्बुर है दुखों की धूप को गर अपनी शिद्दत पर,
मेरे सर पर भी साया है मेरी माँ की दुवाओं का।

ओज की प्रसिद्ध कवयित्री प्रीति अग्रवाल ने भगवान श्रीराम और माता सीता को समर्पित पर अद्भुत पंक्तियाँ पढ़ी। माँ के लिए उन्होंने कहा-
“मां की ममता का क्या कहना मां के जैसा कोई नहीं
दुख सुख सारे भर लेती है अपने छोटे आंचल में।।’

कार्यक्रम कई सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारित किया गया। जिसमें भारत के अलावे कई देश के सैकड़ों लोगों ने देखा।

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