संपादकीय।
कोलकाता पुलिस की तुलना स्काटलैंड यार्ड से की जाती है। यह ब्रिटेन की पुलिस का नाम है। ठीक उसी तरह से अनुशासन के दायरे में रहकर काम करने वाली पुलिस जिसके नाम के डंके पुरी दुनिया में बजते हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से हो रही लगातार मौतों से कोलकाता पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठना स्वासभाविक है।
आखिर क्या वजह है इन मौतों की
भले सरकार इन्हें कोरोना वीर कहकर अपनी जिम्मेादारी से पल्ला झाड ले रहा है, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं कि लोगों की सुरक्षा में जुटी इस पुलिस की सुरक्षा में आखिर क्या कमी है। क्या यह केवल संक्रमण की वजह से है, या इसके पीछे कहीं न कही हमारी सरकारी कार्यशैली जिम्मे्दार है।
सरकार को दोष देना कितना सही
लोकतांत्रिक देशों की व्यनवस्था में आम जनता हर चीज के लिए सरकार को दोष देती है। वहीं दूसरी ओर सरकार भी इसे तवज्जों नहीं देती। पर जिस तरह से लोगों की सुरक्षा देने वाले इस तरह से असुरक्षित हों तो सवाल उठना लाजिमी है। पर केवल सवाल उठाने से इस समस्या का हल कतई नहीं हो सकता। हमें यह समझना चाहिए की आखिर सुरक्षा व्यवस्था में चुक कहां हो रही है। कोलकाता पुलिस के तेजतर्रार अधिकारी व जवान अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों की सेवा कर रहें हैं। अगर यही सिलसिला रहा तो वह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कैसे कर सकते हैं। हाल ही में कोलकाता के एसीपी पद पर तैनात उदय शंकर बनर्जी की कोरोना से मौत की खबर के बाद यह सवाल अपना जवाब मांगता नजर आता है।
कल तक जो अधिकारी प्रशासनिक अव्यवस्था पर सवाल उठाने वाले निचले स्तर पर कार्यरत पुलिस कर्मियों का तबादला कर इतिश्री कर रहे थे। आज व्यावस्था की सडन का खामियाजा उनको भी भुगतना पड रहा है। क्याक यह जागरुकता की कमी है। लगातार कोरोना संक्रमण के बारे में लोगों को जागरुक करने वाली पुलिस की सुरक्षा में कैसे सेंध लग रही है। इस पर विचार करना जरुरी है। केवल खानापुर्ति और खबरों में श्रद्धाजंलि देने से यह सिलसिला कभी नहीं रुक सकता।