जाने कैसे कोरोना के खिलाफ जंग में ‘कारगर अस्त्र’ एवं असरदार साबित हो रहा है आयुर्वेद
कोरोना के सामने हमारी ढाल बनकर खड़ा है आयुर्वेद, जानिए काढ़ा किस तरह से है फायदेमंद
कोलकाता, डेस्क :- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की चमत्कारी एंटी बायोटिक, एंटी वायरल और स्टेरॉयड दवाओं की चकाचौंध में हम अपनी वैदिककाल से प्रमाणित सनातन चिकित्सा पैथी आयुर्वेद को भूलते जा रहे थे, पर लाइलाज एवं प्राणघातक चीनी वायरस कोरोना से सामना होने पर हमें आयुर्वेद ने ही संभाला। आयुर्वेदिक औषधि और घरेलू मसालों के रूप में युगों से इस्तेमाल हो रहे गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, सोंठ, अदरक, लौंग, काली मिर्च और दालचीनी का काढ़ा कोरोना के खिलाफ जंग में ‘कारगर अस्त्र’ साबित हो रहा है।
आधुनिक पैथी के चिकित्सा विज्ञानी भी मानते हैं कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की खासियत के बल पर यह काढ़ा न सिर्फ अधिकतर लोगों को संक्रमण से बचा रहा है बल्कि संक्रमित रोगियों की प्राणरक्षा और शीघ्र संक्रमणमुक्त होने में भी रामबाण साबित हो रहा है। इन सहज-सुलभ औषधियों एवं मसालों से तैयार काढ़ा दिन में एक या दो बार पीकर करोड़ों लोग कोरोना को मात दे रहे हैं। काढ़े का प्रभाव देखकर आयुष मंत्रालय और कई अन्य प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान इन आयुर्वेदिक औषधियों-मसालों के औषधीय गुणों पर नए संदर्भ में शोध एवं परीक्षण कर रहे हैं।
गिलोय- इसे गुड़ूची या अमृता भी कहते हैं। इसके रासायनिक अवयव रक्त में मौजूद श्वेत कणिकाओं की कार्यक्षमता बढ़ाकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करते हैं। इसके तने से तैयार काढ़ा दमा, खांसी, डेंगू, स्वाइनफ्लू और शुगर का स्तर नियंत्रित करने में कारगर है। पाचन दुरुस्त करने के साथ सूजन भी कम करता है। यही वजह है कि गिलोय अर्थराइटिस के भी इलाज में लाभकारी है।
अश्वगंधा- एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर अश्वगंधा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए रामबाण मानी जाती है। यह हाई ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने के साथ कोलेस्ट्रॉल को भी कम करती है। कहते हैं कि अश्वगंधा कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। वहीं नए सेल्स नहीं बनने देता। इतने सारे गुणों के कारण ही इसे भारतीय जिनसिंग भी कहा जाता है।
दालचीनी- गर्म तासीर वाला यह मसाला बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट है। दालचीनी तनाव कम कर मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने में लाभकारी है। पार्किंसन और अल्जाइमर जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों में भी चिकित्सक इसे लेने की सलाह देते हैं। आयुर्वेद में इसे प्राकृतिक ब्लडथिनर कहा जाता है जिससे ब्लड सरकुलेशन अच्छा होता है। इसमें एंटीइन्फ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाले) गुण भी हैं। पाचन संबंधी विकार में भी यह कारगर है।
काली मिर्च- सर्दी-जुकाम हो तो काली मिर्च लेने की सलाह बड़े बुजुर्ग यूं ही नहीं देते। यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। यही वजह है कि काढ़े में इसका प्रयोग अनिवार्य है। काली मिर्च में पिपराइन भी पाया जाता है जो एंटीडिप्रेसेंट है। यानी टेंशन कम करने के साथ डिप्रेशन दूर करती है।
अदरक- अदरक वाली चाय के शौकीनों को शायद ही पता हो कि यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है। यह सर्दी-जुकाम जैसे संक्रमण से बचाने के साथ प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है। यही नहीं, अदरक पाचन शक्ति भी दुरुस्त करती है। इसमें विटामिन ए और डी के साथ-साथ आयरन और कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो शरीर को ऊर्जा देता है।
लौंग- खुशबूदार मसाले के रूप में तो लौंग को जाना ही जाता है लेकिन इसमें एंटीऑक्सीडेंट,एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण भी भरपूर हैं। इसके तेल में मिनरल्स जैसे पोटेशियम, सोडियम, फास्फोरस,आयरन, विटामिन ए और सी अत्यधिक मात्रा में होते हैं। गर्म तासीर वाली लौंग दांत के दर्द में भी लाभकारी है।
तुलसी- तुलसी का पौधा एक वरदान है। घर के आंगन में लगे तुलसी के पौधों में जबरदस्त एंटीबैक्टीरियल तत्व होते हैं। यही वजह है कि पौराणिक महत्व से अलग यह औषधीय पौधे के रूप में भी जाना जाता है। सर्दी-खांसी से लेकर कैंसर तक के इलाज में तुलसी को कारगर पाया गया है। यही वजह है कि तुलसी का काढ़े में प्रयोग अनिवार्य है।
ऐसे बनाएं काढ़ा
पश्चिम बंगाल के जाने माने आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉक्टर देवदास दत्ता कहते हैं कि काढ़ा तैयार करने के लिए 4-4 भाग गिलोय और तुलसी, 2-2 भाग दालचीनी व सोंठ, एक भाग लौंग के जौ के बराबर टुकड़े कर लें। इस चूर्ण को दो कप पानी में तब तक उबालें। जब तक वह घटकर आधा कप न रह जाए। इसके पश्चात स्वाद के अनुसार इसमें गुड़ या मुनक्का मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। अश्वगंधा चूर्ण तीन ग्राम पानी या दूध के साथ सुबह-शाम दो बार ले सकते हैं। यदि अश्वगंधा सत ले रहे हैं तो 500 मिलीग्राम से एक ग्राम तक दो बार लें।
आयुष मंत्रालय करा रहा है इन औषधियों पर शोध
कोविड-19 पर अश्वगंधा,गिलोय,मुलेठी, पीपली और आयुष 64 के प्रभाव का आकलन करने के लिए आयुष मंत्रालय द्वारा अस्पतालों में क्लीनिकल ट्रायल कराए जा रहे हैं।
कारगर है काढ़ा : डॉ तापश मंडल
बेलै शंकरपुर राजीब गॉधी मेमोरियल अयुर्वेदिक कॉलेज एवं होस्पिट्ल ,उतर 24 परगना , पश्चिम बंगाल के प्रिन्सिपल डॉ तापश मंडल बताते है कि काढ़े में इस्तेमाल होने सामग्री चरक संहिता में इम्यूनिटी को बढ़ाने में प्रमाणिक रूप से कारगर बताई गई है। काढ़े के रूप में औषधियां जब ब्लड में पहुंचती है तो उन प्रोटीन की कार्यक्षमता बढ़ाने का कार्य करती हैं जो इम्यूनिटी बूस्टर हैं। यही वजह है कि खासकर वायरल इंफेक्शन से निपटने में काढ़ा काफी कारगर पाया गया है।